गुंचा मुरझाया फिर से एक,
फिर से एक बगीचा अधुरा हो गया।
क्यारी की शान वो गुंचा,
फिर से अकेला हो गया।
पानी की बूंदों सा निष्पाप,
मिटटी की सुगंध सा तेज़,
मन के भावों सा चंचल,
वो गुंचा था जैसे हलचल।
गिरा मिटटी में, गन्दा हुआ,
खिलने की उम्मीद में लेकिन खड़ा हुआ।
भवरों के डर ने उसे फिर मिटटी में मिला दिया,
वो गुंचा क्यारी का थक हार के सो गया।
Waah kya baat hai
ReplyDeletedhanyavaad.....
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