घर के बरामदे में उग गया ख़ामख़ा,
वो तुलसी का पौधा
पत्थरों की कठोर दरारों से झाँकता,
वो तुलसी का पौधा
मदमस्त वो ज़िन्दगी से भरा,
खुद कि हिफाजत को सिपाहियों सा खड़ा
एक दिन मुझसे रूबरू हो गया
वो तुलसी का पौधा
जिस दिन मुलाक़ात का इकरार था
उसको मेरा इंतज़ार था
ठहरा शायद तभी तो इतने दिन
बरामदे में अपनी जड़े फैलाये
मेरी पहली नज़र को भांप गया
वो तुलसी का पौधा
ध्यान न दिया उसपर इतने दिन
औरकों सा पलट दिया
कपडे सुखाते सुखाते बरामदे में
मुखालफत की आँखों से कह गया उस दिन
बस यूँही मुलाक़ात कर गया
वो तुलसी का पौधा
वो तुलसी का पौधा
पत्थरों की कठोर दरारों से झाँकता,
वो तुलसी का पौधा
मदमस्त वो ज़िन्दगी से भरा,
खुद कि हिफाजत को सिपाहियों सा खड़ा
एक दिन मुझसे रूबरू हो गया
वो तुलसी का पौधा
जिस दिन मुलाक़ात का इकरार था
उसको मेरा इंतज़ार था
ठहरा शायद तभी तो इतने दिन
बरामदे में अपनी जड़े फैलाये
मेरी पहली नज़र को भांप गया
वो तुलसी का पौधा
ध्यान न दिया उसपर इतने दिन
औरकों सा पलट दिया
कपडे सुखाते सुखाते बरामदे में
मुखालफत की आँखों से कह गया उस दिन
बस यूँही मुलाक़ात कर गया
वो तुलसी का पौधा
No comments:
Post a Comment