Thursday, May 24, 2012

हाँ यही ज़िन्दगी है...

धुएं और हल्ले के बीच से निकल रही है,
बह रही  है, चिल्ला रही है.

कभी हंस के तो कभी मायूसी से सह रही है,
सबसे कह रही है.

दिल बहलाने के लिए सहारा लेती,
बोझ के नीचे दब रही है.

तूफानों के बीच लौ लिए जैसे शांति
की उम्मीद कर रही है.

गिर के बार बार उठती वो जीने की
तमन्ना रख रही है

हादसों के सिलसिले को देख वो मन 
ही मन मुस्कुरा रही है

पूछ रही है,  क्या यही ज़िन्दगी है,
हाँ यही ज़िन्दगी है...



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