Monday, May 28, 2012

मैं क्या सचमुच इतनी बड़ी हो गयी...???


भोली भली सी मेरी हंसी मुस्कराहट में बदल गयी,
उदासी जाने कब गुस्से मे बदल गयी.
वक़्त के साथ छोटी छोटी हसरतें ज़रूरतों मे बदल गयी,
मैं क्या सचमुच इतनी बड़ी हो गयी.

बालों की उलझनें शैली मैं बदल गयी,
आज़ादी कब जिम्मेदारी मे बदल गयी.
बचपन की हरकतें भी अब पीछे रह गयी,
मै क्या सचमुच इतनी बड़ी हो गयी.

मेरी बातें उनकी बातों से बड़ी हो गयी,
मेरी आदतें उनकी आदतों से अलग हो गयी.
जिस गोद मे बचपन से खेली वो गोद छोटी हो गयी
या मैं सचमुच मे इतनी बड़ी हो गयी.......



Sunday, May 27, 2012

वो पुराना घर......

वो पुराना घर आज भी डरावना लगता है,
जैसे अतीत के हादसों को अब भी छुपाये बैठा है.

दीवारों के रंग, उसकी छाया और भी धुंदली पड़ गयी हैं,
फिर भी कीवाड़ों की ओर नज़रें गड़ाए बैठा है.

आँगन की मट्टी से पैरों के निशाँ गायब हो गए,
फूल पत्ते भी सारे मुरझा के सो गए.

कोई नहीं है अब जो उसके अन्दर झांके, 
वो पुराना घर शायद अब भी किसी के आने की आस लगाये बैठा है...


Saturday, May 26, 2012

एक तो नहीं

हम कितने हूबहू एक, हमशकल से लगते हैं,
कहीं हमारा नाम और ईमान एक तो नहीं.

हमारी आदतें और बातें कितनी मेल खाती हैं,
कहीं हमारी मंजिलो का रास्ता एक तो नहीं.

कितना अपना और पहचाना सा लगता है तुम्हारा एहसास,
कहीं हमारी उँगलियों के निशान एक तो नहीं.

मेरा मजहब पूछने के पहले ज़रा देख लो मेरे रफ़ीक,
हमारे खून का रंग कहीं एक तो नहीं...



Thursday, May 24, 2012

हाँ यही ज़िन्दगी है...

धुएं और हल्ले के बीच से निकल रही है,
बह रही  है, चिल्ला रही है.

कभी हंस के तो कभी मायूसी से सह रही है,
सबसे कह रही है.

दिल बहलाने के लिए सहारा लेती,
बोझ के नीचे दब रही है.

तूफानों के बीच लौ लिए जैसे शांति
की उम्मीद कर रही है.

गिर के बार बार उठती वो जीने की
तमन्ना रख रही है

हादसों के सिलसिले को देख वो मन 
ही मन मुस्कुरा रही है

पूछ रही है,  क्या यही ज़िन्दगी है,
हाँ यही ज़िन्दगी है...



मेरे जैसे लाखों है तुम्हारे पास,
मेरे पास बस एक हो तुम.

बहाने खुश रहने के हजारों है तुम्हारे पास,
मेरी ख़ुशी का एक ही बहाना है वो हो तुम.

सौ उम्मीदें है तुमसेतुमको घेरे हर पल,
मेरी जीने की एक ही उम्मीद है वो हो तुम.

तुम्हारे हर एक पल से कई कल जुड़े हैं,
मेरे कल के हर एक पल से जुड़े हो तो  एक बस तुम...




मुझे मतलब नहीं.....

सूरज में अगर गर्मी है तो मुझे उसकी राख से मतलब नहीं,
चाँद में अगर दाग है तो मुझे उसकी बदसूरती से मतलब नहीं.

गहरे पानी में अगर काई है तो मुझे उसकी चिकनाई से मतलब नहीं,
सही गर मैंने  किया  तो  मुझे  रुसवाई  से  मतलब  नहीं…….

मतलब  है  तो  उस  एहसास  से  जिसकी  गर्मी  से  रख  बन  गयी,
मतलब  है  तो  उस  प्यार  से  जिसकी  बदसूरती  दिल  को  छू  गयी .

मतलब  है  तो  उन  पलकों  से  जिन में  आंसुओं  की  काई  बन  गयी,
मतलब  है  तो  उस रिश्ते  से  जिस में  रुसवाई   से  ज़िन्दगी   बन  गयी .....

वो तुलसी का पौधा.....

घर के बरामदे में उग गया ख़ामख़ा, वो तुलसी का पौधा पत्थरों की कठोर दरारों से झाँकता, वो तुलसी का पौधा मदमस्त वो ज़िन्दगी से भरा, खुद क...