Saturday, August 4, 2012

ये घर है यहाँ आराम है.....

ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.

कश्मकश से दूर,
परेशानियों से बेखबर,
इसकी यही तो पहचान है.
लोरी सुनाता,
और कभी डांटता, 
इसकी खुद की एक जुबान है.
ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.

अँधेरे उजालों के बीच खेलता,
कभी गन्दा होता सफाई के लिए रोता,
इसको खुद का भी बहुत ध्यान है.
यहाँ वहां चीज़ें छुपाता,
लाखों राज अपने अन्दर दबाता,
किसी से कुछ न कहता,
भावनाओं का इसको बड़ा सम्मान है.
ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.

हजारों रूप बदलता,
समय के साथ ढलता,
लोगों के साथ जीता,
और उनके साथ मरता,
नन्हे से जीवन को आसरा देता,
आखिर इसको भी तो बड़े काम हैं.
ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.

Friday, August 3, 2012

गहरी है वो बस गहरी है............

गहरी है वो बस गहरी है,
उसमे शोर का कोई चिन्ह नहीं.
उसमे जीवन की कोई चाह नहीं,
आदि है सिर्फ, कोई अंत नहीं.
खड़ी है बस सहारे से,
डह जाएगी एक इशारे से.
वो विशाल है, एक काल है,
उसकी छांव का कोई अर्थ नहीं,
खुद बन जाए इतनी समर्थ नहीं.
गहरी है वो बस गहरी है,
उसमे शोर का कोई चिन्ह नहीं....





वो तुलसी का पौधा.....

घर के बरामदे में उग गया ख़ामख़ा, वो तुलसी का पौधा पत्थरों की कठोर दरारों से झाँकता, वो तुलसी का पौधा मदमस्त वो ज़िन्दगी से भरा, खुद क...