Sunday, January 20, 2013

वो रात...

कुछ रातें मैंने ख़राब कर दी,
कुछ रातें किस्मत ने।
जिस दिन ख़राब रात में जज़्बात उड़े,
उस दिन नीदों ने भी मुझसे दुश्मनी कर ली।

ख़राब रात ने उस दिन ज़िन्दगी को ख़राब कर दिया,
जिस दिन उसने कागजों का मुंह देख लिया।
कागजों मे छपे अंकों ने जिस दिन ख़राब रात का मोल कर दिया।

सिलवटें भी ना समेत पायी जिस शिकन को,
ना बयाँ कर पायी अन्दर की सिलवटों को,
वो पहली ख़राब रात ने अपने अन्दर सब कुछ समेट लिया।

वो आँखें अब ख़राब आँखों में शामिल हो गयी,
वो हस्ती अब ख़राब हस्तियों में,
वो ख़राब रात ने रातों रात मेरा हुलिया बदल दिया।

उस रात के बाद मेरा नाम कुछ और था,
उस रात के बाद मेरी मंजिलों का रास्ता कुछ और था।
वो रात हसीं थी बस मेरी मजबूरियां कुछ और थी,
वो बेहद खुबसूरत रात शायद बस मेरे लिए ही ख़राब थी।



Saturday, January 5, 2013

वो गुंचा क्यारी का थक हार के सो गया...

गुंचा मुरझाया फिर से एक,
फिर से एक बगीचा अधुरा हो गया।
क्यारी की शान वो गुंचा,
फिर से अकेला हो गया।

पानी की बूंदों सा निष्पाप,
मिटटी की सुगंध सा तेज़,
मन के भावों सा चंचल,
वो गुंचा था जैसे हलचल।

गिरा मिटटी में, गन्दा हुआ,
खिलने की उम्मीद में लेकिन खड़ा हुआ।
भवरों के डर ने उसे फिर मिटटी में मिला दिया,
वो गुंचा क्यारी का थक हार  के सो गया।

वो तुलसी का पौधा.....

घर के बरामदे में उग गया ख़ामख़ा, वो तुलसी का पौधा पत्थरों की कठोर दरारों से झाँकता, वो तुलसी का पौधा मदमस्त वो ज़िन्दगी से भरा, खुद क...