ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.
कश्मकश से दूर,
परेशानियों से बेखबर,
इसकी यही तो पहचान है.
लोरी सुनाता,
और कभी डांटता,
इसकी खुद की एक जुबान है.
ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.
अँधेरे उजालों के बीच खेलता,
कभी गन्दा होता सफाई के लिए रोता,
इसको खुद का भी बहुत ध्यान है.
यहाँ वहां चीज़ें छुपाता,
लाखों राज अपने अन्दर दबाता,
किसी से कुछ न कहता,
भावनाओं का इसको बड़ा सम्मान है.
ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.
हजारों रूप बदलता,
समय के साथ ढलता,
लोगों के साथ जीता,
और उनके साथ मरता,
नन्हे से जीवन को आसरा देता,
आखिर इसको भी तो बड़े काम हैं.
ये घर है यहाँ आराम है,
लौ देता उनको जो बेजान हैं.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ ब्लॉगर्स चौपाल में आपका स्वागत है.
Dhanyawaad...
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