Friday, September 21, 2012

मैं और तुम........

शाम की तरह जैसे आ गए हो तुम,
मुस्कुरा रहे हो खिलती चांदनी से तुम.
दस्तकें जो दी तुमने दिल के द्वार पे,
झुक गया ये आसमान भी इतने प्यार से.
चली गयी है लहरें भी थक हार के,
और रह गए हो मेरे पास बस एक तुम.

सोचती हूँ ऐसा क्या हुआ है मुझे,
लिख रही हूँ क्यों, क्यों है शब्द बंधे हुए.
ढूंढ लूँ सारे मोती जो है कहीं छुपे हुए,
चुरा लूँ सारे पल जो हैं तुमसे जुड़े हुए.
शोर मे भी आज है ख़ामोशी सिली हुई,
और खो गए है एक दुसरे मे मैं और तुम......... 

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